Tuesday, September 25, 2018

बिशप को घटनास्थल पर ले गई पुलिस

एक नन के साथ बलात्कार और उसका यौन उत्पीड़न करने के आरोपों में गिरफ्तार बिशप फ्रैंको मुलक्कल को पुलिस रविवार को अपराध के घटनाक्रम की कड़ियों को जोड़ने के लिए कुराविलांगडु के निकट स्थित एक अतिथि गृह ले गई।
पाला में एक मजिस्ट्रेट अदालत ने बिशप फ्रैंको मुलक्कल की जमानत याचिका शनिवार को खारिज कर दी थी और उन्हें दो दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया था। बिशप को लेकर पुलिस वाहन सुबह दस बजकर 20 मिनट पर सेंट फ्रांसिस मिशन होम पहुंचा और प्रक्रिया को पूरा करने के बाद पुलिस सुबह 11 बजकर 10 मिनट पर बिशप को लेकर वहां से रवाना हुई।
अदालत में सौंपी गई अपनी रिमांड रिपोर्ट में पुलिस ने कहा कि 2014 और 2016 के बीच सेंट फ्रांसिस मिशन होम के अतिथि गृह में नन के साथ 13 बार बलात्कार और अप्राकृतिक सेक्स किया था।
प्रदर्शन करने वाली नन सस्पेंड
सायरो मालाबार कैथोलिक चर्च की एक नन ने आरोप लगाया है कि बलात्कार के आरोपी बिशप फ्रैंको मुलक्कल की गिरफ्तारी की मांग को लेकर कोच्चि में ननों के प्रदर्शन में शामिल होने के बाद उसे चर्च की ड्यूटी से दूर रहने के लिए कहा गया है। कोच्चि से रविवार की सुबह यहां लौटी नन ने दावा किया कि उसे मदर सुपीरियर ने मौखिक रूप से सूचित किया है कि वह प्रार्थना कराने और चर्च से संबंधित अन्य ड्यूटी से दूर रहेंगी।विश्व अर्थव्यवस्था का रूप बदल रहा है। विकसित देशों की प्रमुख अर्थव्यवस्था अमेरिका ने वैश्वीकरण से पीछे हटने के कदम उठाये हैं। हाल ही में अमेरिका ने भारत और चीन से आयातित स्टील पर आयात कर बढ़ा दिये थे, जिससे कि अमेरिकी स्टील निर्माताओं को इनसे प्रतिस्पर्धा करने में आसानी हो जाये। इस परिस्थिति में हमें तय करना है कि हम ग्लोबलाइजेशन को पकड़े रहेंगे अथवा हम भी अमेरिका की तरह इससे पीछे हटेंगे।
विषय को समझने के लिए हमें इसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में जाना होगा। वैश्वीकरण के दो प्रमुख बिन्दु हैं। एक बिन्दु माल के व्यापार का है। विश्व व्यापार संघ (डब्ल्यूटीओ) के अंतर्गत प्रमुख सभी सदस्य देशों ने आयातों पर उनके द्वारा आरोपित की जाने वाली आयात कर की अधिकतम सीमा तय कर ली थी। विचार था कि आयात कर न्यून होने से विश्व के सभी देशों में व्यापार बढ़ेगा और सम्पूर्ण विश्व को सस्ते माल उपलब्ध हो जायेंगे। जैसे यदि भारत में कपड़े सस्ते बनते हैं तो वे अमेरिकी उपभोक्ता को सस्ते उपलब्ध हो जायेंगे और यदि अमेरिका में सेब सस्ते उत्पादित होते हैं तो वे भारत के उपभोक्ता को सस्ते दाम में उपलब्ध हो जायेंगे।
वैश्वीकरण का दूसरा बिन्दु नई तकनीकों पर पेटेन्ट कानून का था। डब्ल्यूटीओ के वजूद में आने के पहले कोई भी देश किसी दूसरे देश में आविष्कार की गई तकनीक की नकल करके अपने देश में उसका उपयोग कर सकता था। जैसे यदि माइक्रोसॉफ्ट ने अमेरिका में विन्डोज़ सॉफ्टवेयर का आविष्कार किया तो भारतीय सॉफ्टवेयर कम्पनियां उसी प्रकार के सॉफ्टवेयर का निर्माण करके देश में बेच सकती थीं। डब्ल्यूटीओ के अन्तर्गत व्यवस्था दी गई कि सभी नई तकनीकों पर 20 साल तक पेटेंट रहेगा। यानी विन्डोज़ सॉफ्टवेयर के आविष्कार के बाद बीस वर्षों तक उसकी नकल कोई दूसरा देश नहीं कर सकता है। इस व्यवस्था के अन्तर्गत जिन-जिन देशों के द्वारा नई तकनीकों का ज्यादा आविष्कार हो रहा था, उन्हें अपने माल को पूरे विश्व में ऊंचे दाम पर बेचने का अवसर मिल गया। जैसे माइक्रोसॉफ्ट के लिए सम्भव हो गया कि वह विन्डोज़ सॉफ्टवेयर को पूरे विश्व में ऊंचे दाम पर बेचे क्योंकि किसी भी देश को इस तकनीक की नकल करने की छूट नहीं थी।
डब्ल्यूटीओ के बनाने से आशा की गई थी कि विकसित देशों को पेटेंट से आय अधिक होगी। मुक्त व्यापार से विकासशील देशों में बना सस्ता माल भी उपलब्ध हो जायेगा। भारत जैसे देशों को आशा थी कि अमेरिका के बाजार उनके माल के लिए खुल जायेंगे और उन्हें अपना माल निर्यात करने का अवसर मिलेगा, जिससे भारत में आय बढ़ेगी। चीन ने इस व्यवस्था का भरपूर लाभ उठाया है और आज सम्पूर्ण विश्व में चीन का माल छा गया है क्योंकि डब्ल्यूटीओ के अन्तर्गत सभी देशों को चीन के माल पर आयात कर बढ़ाने का अधिकार नहीं है। लेकिन विकासशील देशों ने आकलन किया कि पेटेंट से हुए नुकसान की तुलना में व्यापार से और निर्यातों से उन्हें लाभ ज्यादा होगा। इसलिये उन्होंने भी डब्ल्यूटीओ का समर्थन किया था।
बीते दशक में परिस्थिति में मौलिक अन्तर आया है। आज विकसित देशों में नयी तकनीकों का आविष्कार कम हो रहा है। जैसे कई वर्षों से माइक्रोसॉफ्ट द्वारा नये विन्डोज़ प्रोग्राम का आविष्कार नहीं हो सका है। इस परिस्थिति में वैश्वीकरण अमेरिका के लिए हानिप्रद हो गया है। पेटेन्ट कानून से उनकी आय कम हो गई है। जबकि मैन्यूफैक्चरिंग के बाहर जाने से वहां पर रोजगार के अवसर कम हो गये हैं। इसलिये आज अमेरिका वैश्वीकरण से पीछे हट रहा है। इसलिये अमेरिका ने मुक्त व्यापार से पीछे हटने का निर्णय लिया है। ध्यान देने की बात यह है कि हमारे लिए मुक्त व्यापार अभी भी लाभप्रद है। नई तकनीकों के आविष्कार कम होने से पेटेन्ट के कारण होने वाला नुकसान हमें कम हुआ है। जबकि मुक्त व्यापार बने रहने से हमारे निर्यात बने रहेंगे। इसका हमें लाभ मिलेगा। अतः वैश्वीकरण विकसित देशों के लिए हानिप्रद और विकासशील देशों के लिए लाभप्रद हो गया है। इसलिये आज अमेरिका वैश्वीकरण से पीछे हट रहा है जबकि भारत वैश्वीकरण की वकालत कर रहा है। इस संदर्भ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसी वर्ष के प्रारम्भ में दाबोस में द वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की दाबोस मीटिंग में वैश्वीकरण को बनाये रखने पर जोर दिया था जो कि सही सोच है।
यह स्पष्ट है कि यदि सभी देश वैश्वीकरण को अपनायें तो आज भारत के लिए वैश्वीकरण लाभप्रद है। प्रश्न यह है कि यदि अमेरिका वैश्वीकरण से पीछे हट रहा है तो क्या हमें भी वैश्वीकरण से पीछे हटना चाहिए अथवा वैश्वीकरण को पकड़े रहना चाहिए? यदि अमेरिका के वैश्वीकरण से पीछे हटने के बावजूद हम वैश्वीकरण को पकड़े रहते हैं तो हमें दोहरा नुकसान होगा। वैश्वीकरण को पकड़े रहने से हमारे पेटेन्ट कानूनों के कारण आय बाहर जाती रहेगी जैसे हम विन्डो सॉफ्टवेयर की नकल नहीं कर सकेंगे और हमारे निर्यात भी नहीं बढ़ेंगे क्योंकि अमेरिका द्वारा हमारे निर्यातों पर आयात कर बढ़ा दिये गये हैं जैसे स्टील पर। इसके विपरीत हमारे देश में आयात बढ़ते जायेंगे चूंकि वैश्वीकरण को अपनाकर हम आयात करों को न्यून बनाये रखेंगे। आज अपने देश में चीन का माल भारी मात्रा में आ रहा है क्योंकि हमने वैश्वीकरण को पकड़ रखा है।
इसके विपरीत यदि हम अमेरिका की तरह संरक्षणवाद को अपनायें तो हमें लाभ ज्यादा होगा। संरक्षणवाद को अपनाने से पेटेंट कानून को हम निरस्त कर सकते हैं और विन्डोज़ सॉफ्टवेयर की नकल कर सकते हैं, जिससे हमें लाभ होगा। साथ-साथ संरक्षणवाद को अपनाने से अमेरिका और चीन से आयात हो रहे माल पर हम आयात कर बढ़ा सकेंगे और हम अपने उद्योगों की रक्षा कर सकेंगे।
मूल रूप से वैश्वीकरण आज हमारे लिए लाभप्रद है। लेकिन यह तब ही लाभप्रद है जब दूसरे देश भी इसको अपनायें। यदि सभी देश वैश्वीकरण को अपनाते हैं तो आज नई तकनीकों का आविष्कार कम होने से हमें पेटेन्ट से नुकसान कम होगा जबकि विश्व व्यापार में अपने माल के निर्यात करने की सुविधा मिलने से निर्यातों से लाभ ज्यादा होगा। लेकिन यदि प्रमुख देश वैश्वीकरण को नहीं अपनाते हैं और हम उसको पकड़े रहते हैं तो यह हमारे लिये घाटे का सौदा हो जायेगा क्योंकि उनके द्वारा उत्पादित माल अपने देश में प्रवेश करेगा जबकि हमारा माल उनके देश में निर्यात नहीं हो सकेगा।
अमेरिका द्वारा भारत और चीन से आयातित स्टील पर आयात कर बढ़ाने के प्रतिरोध में चीन ने अमेरिका से आयातित कुछ माल पर आयात कर बढ़ा दिये थे। हमने ऐसी कोई प्रतिक्रिया फिलहाल नहीं दर्शायी है। हमें भी अमेरिका से आयातित माल पर ही नहीं बल्कि चीन से भी आयातित माल पर आयात कर बढ़ाना चाहिये। अन्यथा हमारे उद्योग वैश्वीकरण से दोहरे नुकसान की चपेटे में आयेंगे। बाहर का सस्ता माल अपने देश में आयेगा और हमारा माल बाहर नहीं जा सकेगा और हमारे लिये वैश्वीकरण घाटे का सौदा हो जायेगा।

Thursday, September 6, 2018

यूरोप की न्यूज एजेंसियों ने गूगल-फेसबुक को फटकारा, कहा- हमारे कंटेंट से आप कर रहे कमाई

रिस. यूरोप की 20 न्यूज एजेंसियों ने मंगलवार को गूगल और फेसबुक को फटकार लगाई। उन्होंने कहा कि आप हमारा कंटेंट मुफ्त में इस्तेमाल करके जमकर कमाई कर रहे हो। एजेंसियों ने दोनों कंपनियों से अपनी कमाई में मीडिया को हिस्सा देने की मांग भी की।
फ्रांस की एजेंसी फ्रांस प्रेस, ब्रिटेन की प्रेस असोसिएशन और जर्मनी की डॉयचे प्रेसेंग्चर समेत 20 न्यूज एजेंसियों के सीईओ ने एक प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए। उन्होंने गूगल-फेसबुक के मामले को अजीब असंतुलन बताते हुए यूरोपियन संसद से नया कॉपीराइट कानून बनाने की मांग की। 

कॉपीराइट कानून पर होगी बहस: न्यूज एजेंसियों की मांग पर यूरोपियन सांसद नए कॉपीराइट कानून के लिए इसी महीने बहस करेंगे। इसमें न्यूज एजेंसियों का कंटेंट (खबरें, गाने और मूवी आदि) इस्तेमाल करने पर फेसबुक-गूगल जैसी कंपनियों को ज्यादा भुगतान करने के लिए बाध्य किया जाएगा। हालांकि, इस कानून का पहला ड्राफ्ट अमेरिकी टेक्नॉलजी कंपनी की दलील के बाद जुलाई में खारिज कर दिया गया था। कंपनी के वकीलों ने इंटरनेट की स्वतंत्रता का हवाला देते हुए कहा था कि इस नियम के लागू होने से ग्राहकों को भी ज्यादा चार्ज देना पड़ेगा।

इतनी कमाई कर रहे गूगल-फेसबुक: खबरें, फोटो और वीडियो मुहैया कराने वाली न्यूज एजेंसियों ने संयुक्त बयान में बताया कि फेसबुक ने 2017 में 40 बिलियन डॉलर (2863 करोड़ रुपए) की कमाई की, जिसमें कंपनी को 16 बिलियन डॉलर (1145 करोड़ रुपए) का मुनाफा हुआ। वहीं, गूगल का शुद्ध लाभ 12.7 बिलियन डॉलर (9085 करोड़) रहा, जबकि कंपनी ने 110 बिलियन डॉलर (78 हजार करोड़) कमाए। न्यूज एजेंसियों का कहना है कि अगर ये दोनों कंपनियां इतना मुनाफा कमा रही हैं तो हमें उसमें हिस्सा क्यों नहीं मिलना चाहिए? दिल्ली. भारत ने अमेरिका के दबाव को दरकिनार करते हुए रिफाइनर्स को ईरान से तेल आयात करने की इजाजत दे दी। साथ ही, अमेरिकी प्रतिबंध को देखते हुए शिपिंग कॉर्प ऑफ इंडिया (एससीआई) समेत अन्य बड़े तेल आयातकों को नुकसान की भरपाई करने का वादा भी किया है। सूत्रों के मुताबिक, चीन की तरह भारत भी ईरान से तेल आवक बनाए रखने की कोशिश कर रहा है।
भारत और चीन के इस कदम से साफ हो गया है कि नवंबर तक यह इस्लामिक राष्ट्र वैश्विक तेल मार्केट से अलग नहीं रहेगा। इसके बाद ईरान के पेट्रोलियम सेक्टर पर अमेरिका का प्रतिबंध लागू हो जाएगा। 2015 की परमाणु डील रद्द होने के बाद अमेरिका ने जुलाई 2018 में ईरान पर व्यापारिक प्रतिबंध लगा दिए, जो नवंबर से लागू होंगे। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प का कहना है कि इसके बाद दुनिया का कोई भी देश ईरान से तेल नहीं खरीदेगा।
सरकार के वादे से दूर होगी कंपनियाें की चिंता : एससीआई का कहना था कि हम पश्चिमी देशों के शिपर्स जैसी ही स्थिति में हैं। हमारे पास बचाव का कोई रास्ता नहीं है, इसलिए हम तेल के लिए ईरान का रुख नहीं कर सकते हैं। ऐसे में भारत ने नेशनल ईरानियन ट्रैंकर कंपनी (एनआईटीसी) का रुख किया और नुकसान की भरपाई करने का वादा करते हुए ईरान से तेल आयात सेवा दोबारा शुरू करने के लिए कहा।