Monday, June 24, 2019

कठुआ रेप केस: पीड़ित परिवार किस हाल में है?

एके जैन के मुताबिक़, आम आदमी के पास मुठभेड़ों पर सवाल उठाने और उनकी शिकायत करने के लिए कई मंच उपलब्ध हैं. इनकी वजह से न सिर्फ़ फ़र्ज़ी मुठभेड़ें कम हुई हैं बल्कि अपराधियों को सीधे मौत के घाट उतारने की बजाय उनके पैरों में गोली मारने का चलन भी बढ़ा है. एके जैन कहते हैं, "पहले की मुठभेड़ें तो आर या पार की लड़ाई जैसी होती थीं जिनमें या तो पुलिस को मरना है या फिर अपराधी को."
एसपी अजयपाल शर्मा अभी कुछ दिन पहले ही रामपुर गए हैं. इससे पहले वो प्रयागराज स्थित पुलिस मुख्यालय में पुलिस अधीक्षक कार्मिक के रूप में तैनात थे. पुलिस वालों के बीच 'एनकाउंटरमैन' के नाम से मशहूर अजयपाल शर्मा ने क़रीब दो हफ़्ते पहले ही रामपुर में बतौर पुलिस कप्तान, पदभार संभाला था.
लंदन का लॉर्ड्स क्रिकेट मैदान. यानी क्रिकेट का मक्का. यही वो मैदान है जहां भारत ने 36 साल पहले 1983 में 25 जून को पहली बार क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता था.
कपिल देव के हाथ में लॉर्ड्स पर वर्ल्ड कप ट्रॉफ़ी - ये तस्वीर भारत के इतिहास में सबसे यादगार तस्वीरों में से होगी.
विजेता टीम का हिस्सा रहे क्रिकेटर मदन लाल की वो लाइन हमेशा याद आती है जो उन्होंने मुझसे एक बार इंटरव्यू में कही थी, "आख़िरी विकेट लेने के बाद हम ख़ुशी के मारे ऐसे भागे थे मानो कोई हमारी जान के पीछे पड़ा हो."
सारे नियम क़ायदों को तोड़ते पिच पर भागते भारतीय दर्शकों वाली वो मशहूर तस्वीर देखकर अंदाज़ा ही लगाया जा सकता है कि क्रिकेट प्रेमी किस उन्माद से भर उठे होंगे.
उस वक़्त क्रिकेट के बेताज बादशाह रहे वेस्टइंडीज़ के सामने भारत 183 पर ढेर हो गया था. लेकिन अंडरडॉग मानी जाने वाली भारतीय टीम ने सबसे बड़ा उल्टफेर कर वर्ल्ड कप 43 रनों से जीत लिया था और मोहिंदर अमरनाथ तीन विकेट लेकर बने थे मैन ऑफ़ द मैच.
भारतीय टीम के जीत के समय पत्रकार मार्क टली भारत में ही थे और तुरंत पुरानी दिल्ली गए थे. मार्क टली ने मुझे बताया था कि वे दौड़ भागकर जब पुरानी दिल्ली पहुँचे तो इतने लोग जश्न मनाने गलियों में निकल आए थे कि पैर रखने तक की जगह नहीं थी.
वैसे भारत के पहले वर्ल्ड कप के अलावा लॉर्ड्स कई मायनों में भारतीय क्रिकेट फ़ैन्स के लिए ख़ास है. लॉर्ड्स म्यूज़िम में बहुत सी बेशक़ीमती चीज़ें रखी हैं जिन्हें देखने के लिए दूर-दूर से लोग आते हैं.
इंग्लैंड में किसी भी भारतीय दल का पहला क्रिकेट दौरा 1886 की यहां रखी तस्वीर और पोस्टर में क़ैद है जब पारसियों का एक दल भारत से इंग्लैंड आया था.
भारतीय क्रिकेट के सुपरहीरो सीके नायडू का साइन किया हुआ बल्ला यहां दर्शकों के लिए रखा गया है. सीके नायडू भारत की उस पहली टेस्ट टीम के पहले कप्तान थे जो 1932 में लॉर्ड्स पर खेली थी.
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से रिटायर होने के बाद भी वो 60 साल की उम्र में रणजी खेल रहे थे और आख़िरी चैरिटी मैच 69 की उम्र में खेला.
1946 में भारत के इंग्लैंड दौरे का गवाह रहा पोस्टर हो, शेन वॉर्न के 300वीं विकेट की यादगार, तेंदुलकर की साइन की हुई ख़ास टीशर्ट, या द्रविड़ का साइन किया हुआ बल्ला. क्रिकेट के इतिहास का गवाह रहीं तमाम निशानियाँ लॉर्ड्स म्यूज़ियम में मौजूद हैं.
क्रिकेट वर्ल्ड कप जीतने की दौड़ में शामिल भारत और इंग्लैंड इसी लॉर्ड्स मैदान पर रविवार को भिड़ रहे हैं.
रविवार को लॉर्ड्स पर मैच देखने आने वालों में शायद कोई दर्शक ऐसा भी हो जिसने 1983 की ऐतिहासिक जीत देखी होगी.
1983 की जीत मैंने भले न देखी हो लेकिन लॉर्ड्स में मुझे उस पल का गवाह बनने का मौका ज़रूर मिला था जब 1983 की पूरी की टीम जीत की 25वीं सालगिरह पर 2008 में लॉर्ड्स में इक्ट्ठा हुई थी.
हू ब हू वैसा ही दृश्य लॉर्ड्स पर दोबारा. बालकनी में शैंपेन की बोतल खोली गई थी, 1983 में लॉर्ड्स की जीत को महसूस करने का इससे बढ़िया दिन नहीं हो सकता था मेरे जैसे फ़ैन्स के लिए.
वैसे इस बार क्रिकेट वर्ल्ड कप का फ़ाइनल लॉर्ड्स पर ही होना है.
1983 में तो इंग्लैंड में सट्टा लगाने वाली मशहूर कंपनी लैडब्रोक्स ने भारत को ज़िम्बॉब्वे से बस थोड़ी ही ऊपर जगह दी थी. लेकिन 2019 में हालात ऐसे नहीं हैं.
भारतीय क्रिकेट फ़ैन्स को उम्मीद होगी कि 1983 और 2011 की मधुर यादों में एक और याद और एक ट्रॉफ़ी शायद फिर जुड़ जाए.

Tuesday, June 18, 2019

हमलोगों ने साथ में 'गेम्स ऑफ़ थ्रोन्स' का सीजन

धर्मा की करीबी दोस्त और पड़ोसी निवेदिता बताती हैं, "हम लोगों ने एक साथ 'एवेंजर्स इंड गेम' भी साथ देखने का प्लान बनाया हुआ था. अचंभे में डालने वाली चीज़ों को दीपू जबर्दस्त प्रशंसक था."
महिता कहती हैं, "वो कहा करता था कि आप तो मेरी मां जैसी हैं, मां से भी बढ़कर. मैं उसे दीपू नाम से बुलाती थी तो उसे ये नाम भी बहुत पसंद था. वो हमेशा से आकर्षण का केंद्र था. छह साल से लेकर सत्तर साल के बुजुर्ग तक उसके दोस्त थे. वो मेरे दोस्तों के साथ भी हैंगआउट कर लेता था. मेरे दोस्तों को कभी नहीं लगा कि वह छोटा है. वह काफी मच्योर था."
महिता अपने छोटे भाई के शांत रहने और किसी भी समस्या के हल तलाशने की क्षमता को लेकर अचरज में पड़ जाया करती थीं. वहीं, दीपू के कॉलेज के दोस्तों के मुताबिक़ वो शरारती तो था ही लेकिन पढ़ाई के वक्त उसका ध्यान सिर्फ़ किताबों पर ही रहता था.
दीपू की सहपाठी हर्षिणी बताती हैं, "हमलोग एक ही स्कूल से पढ़े थे. लेकिन हमारी दोस्ती कॉलेज में आकर हुई. शिक्षकों के साथ उसके मतभेद भी होते थे लेकिन उसे ये मालूम था कि कब और कहां से विवाद को आगे नहीं बढ़ाना है."
दीपू के सीनियर अभिराम बताते हैं, "दीपू हमेशा मौज-मस्ती करता हो, ऐसी बात नहीं थी. वो मुझसे गाइडेंस मांगता रहता था कि इंजीनियरिंग में कौन से विषय लेना चाहिए. उसे फीजिक्स से प्यार था. फीजिक्स को लेकर उसमें एक तरह की चाहत थी."
दीपू को संयुक्त प्रवेश परीक्षा में 84 फीसदी अंक हासिल हुए थे. महिता दीपू के कमरे को दिखाती हैं, जिसमें उसकी परीक्षाओं के टाइम टेबल और पढ़ाई का शेड्यूल मार्क किया हुआ है.
महिता कहती हैं, "मेरे भाई की एविएशन में भी खूब दिलचस्पी थी. इसलिए वो एविएशन इंजीनियरिंग पढ़ना चाहता था. वो एयरफ़ोर्स में पायलट भी बनना चाहता था इसलिए वो एनडीए परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था.
महिता और उनकी मां ने दीपू को समझाया था कि कोई बात नहीं है और रिजल्ट ख़राब होने को लेकर बहुत चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.
ठीक 15 दिन बाद हमलोग शिवानी के माता-पिता से मिलने गए थे. जब हम उनकी गली में मुड़े तभी से शिवानी की मां के रोने की आवाज़ सुनाई दे रही थी. तेलंगाना के एक गांव के खपरैल वाले घर में हम पहुंचे थे जिसके आसपास एकमंजिला घर थे.
शिवानी का परिवार बीते आठ सालों से इस घर में किराए पर रह रहा है. लावण्या के पास अपनी बेटी की लैमिनेटेड तस्वीर वाला पोस्टर है, जिस पर लिखा हुआ है, "मैं इंजीनियर बनना चाहती हूं."
शिवानी के पिता भूमा रेड्डी अपनी पत्नी के बगल में बैठकर ये समझने की कोशिश करते हैं कि हमलोग किस बारे में बात कर रहे हैं. वे कान से सुन नहीं पाते. लेकिन थोड़ी देर में उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि बेटी की बात हो रही है तो बोल पड़े, "मेरी बेटी बहुत ही तेज़ थी." 
शिवानी की पहचान एक तेज स्टूडेंट की थी. उसके दोस्तों ने बताया कि वे अपनी मुश्किलों के हल के लिए शिवानी के पास आते थे.
उनकी दोस्त अनीता कहती हैं, "उसे अपने दोस्तों के घर जाना पसंद नहीं था, तो पढ़ने के लिए हम ही उसके घर आ जाते थे."
घर में किचन ही वो जगह थी जहां शिवानी और उनकी छोटी बहन तैयार हुआ करती थीं. उनकी बहन ने हमें शिवानी के फोन में मौजूद तस्वीरें दिखाईं.
सोने के कमरे की दीवार पर शिवानी का एग्ज़ाम शेड्यूल और स्टडी प्लान का टाइम टेबल लगा हुआ था. टाइम टेबल के मुताबिक़ शिवानी पढ़ने के लिए हर दिन चार बजे सुबह उठा करती थीं. 
शिवानी काफी मेहनत करके इंजीनियर बनना चाहती थीं. लावण्या बताती हैं, "वो अपने पिता से कहा करती थीं कि पशुओं को चराने मत जाया करो क्योंकि वे शारीरिक तौर पर विकलांग हैं. वो कहा करती थीं कि बस पांच साल इंतजार करो, हमारी ज़िंदगी बदलने वाली है."

Monday, June 10, 2019

वर्ल्ड कप 2019: विराट कोहली की दरियादिली ट्विटर पर छाई

भारत बनाम ऑस्ट्रेलिया के रविवार को ओवल के मैदान पर हुए मैच में कप्तान विराट कोहली की एक ख़ास वजह से सराहना हो रही है.
न यह उनके 82 रनों की पारी की वजह से है, न ही उनके कप्तानी के कौशल की वजह से.
बल्कि सोशल मीडिया पर उन्हें उनकी खेल भावना के लिए सराहा जा रहा है.
दरअसल, भारतीय पारी के दौरान कुछ भारतीय दर्शक सीमा पर फील्डिंग कर रहे ऑस्ट्रेलियाई खिलाड़ी स्टीव स्मिथ को चिढ़ाने लगे.
उस वक़्त विराट कोहली क्रीज़ पर थे और जब उन्होंने यह देखा तो उन्होंने वहीं से इशारा करके कहा कि वे स्टीव स्मिथ का ताली बजाकर सम्मान करें.
इसके बाद स्क्रीन पर यह भी दिखा कि जब कोहली और स्मिथ आमने-सामने आए तो स्मिथ ने मुस्कुराकर और पीठ ठोंककर उनकी खेल भावना के लिए उन्हें शुक्रिया कहा.
हालांकि मैच के बाद विराट कोहली ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इस पर कहा कि, "यहां बहुत सारे भारतीय समर्थक थे और मैं उन्हें ख़राब उदाहरण नहीं पेश करने देना चाहता था. मेरे विचार में उन्होंने (स्मिथ ने) ऐसा कुछ नहीं किया कि उनकी हूटिंग हो. वो तो केवल क्रिकेट खेल रहे थे. वो वहां खड़े थे और यदि वैसी चीज़ें मेरे साथ होती, मैं माफ़ी मांग चुका होता और फिर वापसी करता, इसके बावजूद मुझे ऐसी परिस्थिति का सामना करना पड़ता तो मुझे भी अच्छा नहीं लगता. इसलिए मैंने दर्शकों के व्यवहार के लिए स्मिथ से माफ़ी मांगी. उनके साथ पहले भी कुछ मैचों में ऐसा हो चुका है और मुझे लगता है यह सही नहीं है."
याद रहे कि पिछले साल दक्षिण अफ्रीका के ख़िलाफ़ एक टेस्ट मैच में उस वक़्त ऑस्ट्रेलियाई कप्तान स्टीव स्मिथ और बल्लेबाज़ कैमरन बैनक्रॉफ्ट ने मिलकर गेंद से छेड़छाड़ करने की बात स्वीकार की थी. इस मामले में डेविड वॉर्नर भी संलिप्त पाए गए थे.
इसके बाद स्टीव स्मिथ से कप्तानी छिन गई थी और उन पर और वॉर्नर पर एक साल का प्रतिबंध लगा था.
स्टीव स्मिथ ने कुछ ही समय पहले ऑस्ट्रेलियाई टीम में वापसी की है.
ऑस्ट्रेलिया के क्रिकेट पत्रकार सैम लैंड्सबर्गर ने ये वाकया साझा करते हुए लिखा, "वाह. विराट कोहली की कितनी शानदार बात है. स्टीव स्मिथ को सीमा के पास फील्डिंग के लिए भेजा गया और तुरंत ही भारतीय दर्शक उन्हें चिढ़ाने लगे. तो कोहली उनकी ओर मुड़े और उन्हें स्मिथ के लिए ताली बजाने का इशारा किया."
आनंद वासु ने लिखा, "शानदार कोहली. उन्होंने स्मिथ को चीटर कहकर चिढ़ा रहे प्रशंसकों को शांत कराया और अच्छे क्रिकेट की सराहना करने को कहा. "
ऑस्ट्रेलियाई पारी का दूसरा ओवर. गेंद भारतीय तेज़ गेंदबाज़ जसप्रीत बुमराह के हाथ में.
ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ डेविड वॉर्नर के बल्ले से लगकर गेंद स्टंप्स को छू गई और बुमराह खुशी में उछल ही पड़े थे कि यह क्या! कम्बख़्त गिल्लियां फिर से नहीं गिरीं.
नहीं गिरीं जी फिर से नहीं गिरीं.
विश्व कप 2019 में अब विकेटों की गिल्लियां ही चर्चा के केंद्र में आ गई हैं. गिल्लियां गिरे बिना बल्लेबाज़ को आउट नहीं माना जा सकता, भले ही गेंद चाहे विकेटों से कुश्ती लड़कर आई हो. इस विश्व कप में पांच बार ऐसा हो चुका है जब गेंद विकेटों पर छुई या लगी लेकिन गिल्लियां नहीं गिरीं.
इसकी वजह है इस विश्वकप में ख़ास तौर पर इस्तेमाल की जा रही ज़िंग गिल्लियां जिसके भीतर फ्लैशिंग लाइट्स हैं. कहा जा रहा है कि इस वजह से इनका वज़न अधिक है.
ऑस्ट्रेलियाई कप्तान आरोन फिंच ने इस बारे में कहा था, "मुझे लगता है कि नए लाइट वाले स्टम्प्स के साथ गिल्लियां कुछ भारी हो गई हैं. इसलिए उन्हें गिराने में कुछ ज़्यादा ही ताक़त की ज़रूरत पड़ती है."
कुछ लोग यह भी कह रहे हैं कि स्टम्प्स के शीर्ष पर जिन गड्ढों में गिल्लियां फंसी रहती हैं, वे गड्ढे इस बार कुछ अधिक गहरे बना दिए गए हैं. इसलिए गेंद की तेज़ चोट के बाद भी वो उनमें फंसी रह जाती हैं.
हालांकि आईसीसी इन गिल्लियों को समस्या नहीं मान रहा. उसका कहना है कि इनका वज़न सामान्य गिल्लियों और तेज़ हवा वाले दिनों के लिए रखी जाने वाली वज़नदार गिल्लियों के बीच का है.
लेकिन चूंकि इस विश्वकप के 14 मुक़ाबलों में पांच बार गिल्लियां गिरने से इनकार कर चुकी हैं, इसलिए सवाल उठ रहे हैं.
आइए नज़र डालते हैं इस विश्वकप में कब-कब नहीं गिरीं गिल्लियां:
1. इंग्लैंड बनाम दक्षिण अफ़्रीका- दक्षिण अफ्रीकी पारी का 11वां ओवर
लेग स्पिनर आदिल रशीद ने दक्षिण अफ्रीकी बल्लेबाज़ क्विंटन डिकॉक को गेंद फेंकी.
क्या हुआ कुछ समझ नहीं आया. लेग स्टंप के पीछे गिरी गेंद को डिकॉक ने रिवर्स स्वीप करने की कोशिश की लेकिन गेंद बल्ले से लगकर ऑफ़ स्टम्प से लगी और फिर पीछे चली गई.
इंग्लैंड को लगा कि उन्होंने डिकॉक को बोल्ड मार दिया है. लेकिन गिल्लियां नहीं गिरी थीं. इसलिए डिकॉक को मिला चौका.