धर्मा की करीबी दोस्त और पड़ोसी निवेदिता बताती हैं, "हम लोगों ने एक साथ 'एवेंजर्स इंड गेम' भी साथ देखने का प्लान बनाया हुआ था. अचंभे
में डालने वाली चीज़ों को दीपू जबर्दस्त प्रशंसक था."
धर्मा को उनकी बहन महिता दीपू कहकर बुलाती थीं. महिता दीपू से पांच साल बड़ी हैं.
महिता
कहती हैं, "वो कहा करता था कि आप तो मेरी मां जैसी हैं, मां से भी बढ़कर.
मैं उसे दीपू नाम से बुलाती थी तो उसे ये नाम भी बहुत पसंद था. वो हमेशा से आकर्षण का केंद्र था. छह साल से लेकर सत्तर साल के बुजुर्ग तक उसके दोस्त
थे. वो मेरे दोस्तों के साथ भी हैंगआउट कर लेता था. मेरे दोस्तों को कभी नहीं लगा कि वह छोटा है. वह काफी मच्योर था."
महिता अपने छोटे भाई के शांत रहने और किसी भी समस्या के हल
तलाशने की क्षमता को लेकर अचरज में पड़ जाया करती थीं. वहीं, दीपू के
कॉलेज के दोस्तों के मुताबिक़ वो शरारती तो था ही लेकिन पढ़ाई के वक्त उसका
ध्यान सिर्फ़ किताबों पर ही रहता था.
दीपू की सहपाठी
हर्षिणी बताती हैं, "हमलोग एक ही स्कूल से पढ़े थे. लेकिन हमारी दोस्ती
कॉलेज में आकर हुई. शिक्षकों के साथ उसके मतभेद भी होते थे लेकिन उसे ये मालूम था कि कब और कहां से विवाद को आगे नहीं बढ़ाना है."
दीपू को केएफसी का चिकेन बहुत पसंद था. वो अपने दोस्तों के साथ केएफसी आउटलेट्स जाता था.
दीपू
के सीनियर अभिराम बताते हैं, "दीपू हमेशा मौज-मस्ती करता हो, ऐसी बात नहीं
थी. वो मुझसे गाइडेंस मांगता रहता था कि इंजीनियरिंग में कौन से विषय लेना चाहिए. उसे फीजिक्स से प्यार था. फीजिक्स को लेकर उसमें एक तरह की चाहत
थी."
दीपू को संयुक्त प्रवेश परीक्षा में 84 फीसदी अंक हासिल हुए थे. महिता दीपू के कमरे को दिखाती हैं, जिसमें उसकी परीक्षाओं के टाइम टेबल और पढ़ाई का शेड्यूल मार्क किया हुआ है.
महिता
कहती हैं, "मेरे भाई की एविएशन में भी खूब दिलचस्पी थी. इसलिए वो एविएशन
इंजीनियरिंग पढ़ना चाहता था. वो एयरफ़ोर्स में पायलट भी बनना चाहता था इसलिए वो एनडीए परीक्षा की तैयारी भी कर रहा था.
महिता और उनकी मां ने दीपू को समझाया था कि कोई बात नहीं है और रिजल्ट ख़राब होने को लेकर बहुत चिंता करने की ज़रूरत नहीं है.
महिता बताती हैं, "उसने अपने टीचर को भी फोन कर लिया कि सर कब से ट्यूशन लेने आ
जाऊं. फिर हम लोग अपने अपने काम में लग गए. दीपू वॉशरूम चला गया. हमलोग उसे कुछ स्पेस देना चाहते थे. लेकिन जल्दी ही हमने धमाके की आवाज़ सुनी और देखा कि दीपू बालकनी से कूद गया था."
ठीक 15 दिन बाद हमलोग शिवानी के माता-पिता से मिलने गए थे. जब
हम उनकी गली में मुड़े तभी से शिवानी की मां के रोने की आवाज़ सुनाई दे रही
थी. तेलंगाना के एक गांव के खपरैल वाले घर में हम पहुंचे थे जिसके आसपास
एकमंजिला घर थे.
शिवानी का परिवार बीते आठ सालों से इस घर
में किराए पर रह रहा है. लावण्या के पास अपनी बेटी की लैमिनेटेड तस्वीर
वाला पोस्टर है, जिस पर लिखा हुआ है, "मैं इंजीनियर बनना चाहती हूं."
शिवानी
के पिता भूमा रेड्डी अपनी पत्नी के बगल में बैठकर ये समझने की कोशिश करते
हैं कि हमलोग किस बारे में बात कर रहे हैं. वे कान से सुन नहीं पाते. लेकिन थोड़ी देर में उन्हें इस बात का एहसास हुआ कि बेटी की बात हो रही है तो बोल पड़े, "मेरी बेटी बहुत ही तेज़ थी."
शिवानी की पहचान एक तेज स्टूडेंट की थी. उसके दोस्तों ने बताया कि वे अपनी मुश्किलों के हल के लिए शिवानी के पास आते थे.
उनकी दोस्त अनीता कहती हैं, "उसे अपने दोस्तों के घर जाना पसंद नहीं था, तो पढ़ने के लिए हम ही उसके घर आ जाते थे."
घर
में किचन ही वो जगह थी जहां शिवानी और उनकी छोटी बहन तैयार हुआ करती थीं.
उनकी बहन ने हमें शिवानी के फोन में मौजूद तस्वीरें दिखाईं.
शिवानी से तीन साल छोटी अनुषा ने हमें बताया, "अक्का को चूड़ियां बेहद पसंद थी. वो अलग अलग रंगों की चूड़ियां खरीदती थीं, उसे पहनकर तस्वीरें खिंचवाती थीं."
सोने के कमरे की दीवार पर
शिवानी का एग्ज़ाम शेड्यूल और स्टडी प्लान का टाइम टेबल लगा हुआ था. टाइम
टेबल के मुताबिक़ शिवानी पढ़ने के लिए हर दिन चार बजे सुबह उठा करती थीं.
शिवानी काफी मेहनत करके इंजीनियर बनना चाहती थीं. लावण्या बताती हैं, "वो अपने
पिता से कहा करती थीं कि पशुओं को चराने मत जाया करो क्योंकि वे शारीरिक
तौर पर विकलांग हैं. वो कहा करती थीं कि बस पांच साल इंतजार करो, हमारी ज़िंदगी बदलने वाली है."
इस दौरान कुछ पड़ोसी भी आ जाते हैं, हर कोई यही बताता है कि शिवानी शर्मीली और बहुत अच्छा व्यवहार करने वाली लड़की थी.
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